ओम जय जगदीश हरे आरती लिखी हुई, ओम जय जगदीश हरे आरती, आरती ओम जय जगदीश हरे इन हिंदी

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भगतो अगर आप विष्णु जी की आरती ओम जय जगदीश हरे लिखी हुई गाना चाहते है या पढ़ना चाहते है तो आपको इस आर्टिकल में यह आरती हिंदी और एंगिलश दोनों भाषा मे दी गई है इसके अलावा अगर आप श्री बृहस्पतिवार की आरती गाना चाहते है तो वह आरती भी आपको इस आर्टिकल में मिल जाएगी तो भगतो आप यहां से देखकर आरती गा सकते हो।

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे आरती

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट, क्षण में दूर करे ॥
ओम जय जगदीश हरे…

जो ध्यावे फल पावे, दुःख बिनसे मन का, स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे, सुख सम्पति घर आवे, कष्ट मिटे तन का ॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

मात पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी, स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा, तुम बिन और न दूजा, आस करूं मैं जिसकी॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी, स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर, पारब्रह्म परमेश्वर, तुम सब के स्वामी॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

तुम करुणा के सागर, तुम पालनकर्ता, स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी, मैं सेवक तुम स्वामी, कृपा करो भर्ता॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति, स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय, किस विधि मिलूं दयामय, तुमको मैं कुमति॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता, ठाकुर तुम मेरे, स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ, अपने शरण लगाओ, द्वार पड़ा तेरे॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

विषय-विकार मिटाओ, पाप हरो देवा, स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ, सन्तन की सेवा ॥
॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

ओम जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

॥ ओम जय जगदीश हरे…॥

गणेश जी महाराज की आरती। गणेश जी की आरती हिंदी में। गणपती आरती सुखकर्ता दुखहर्ता

Om Jaye Jagdish Hare aarti english me

Om Jaye Jagdish Hare, Swami Jaye Jagdish Hare॥
Bhagt Jano Ke Sankat, Khshan Mein Door Kare॥
Om Jaye Jagdish Hare…..

Jo Dhaywe Phal Pave, Dukh Vinse Man Ka॥
Sukh Sampati Ghar Aave, Kasht Mite Tan Ka॥
Om Jaye Jagdish Hare…….

Maat-Pita Tum Mere, Sharan Gahun Kiskee॥
Tum Bin Aur Na Duja, Aas Karun Jiskee॥
Om Jaye Jagdish Hare…

Tum Puran Parmatma, Tum Antaryami॥
Par-Brahm Parmeshwar, Tum Sabke Swami॥
Om Jaye Jagdish Hare…..

Tum Karuna Ke Saagar, Tum Palankarta॥
Main Moorakh Khal Kami, Mein Sewak Tum Swami,
Kripa Karo Bharta
Om Jaye Jagdish Hare….

Tum Ho Ek Agochar, Sabke Pran Pati॥
Kis Vidhi Milun Dayamay, Tumko Main Kumti॥
Om Jaye Jagdish Hare….

Deenbandhu Dukh Harta, Thakur Tum Mere, Swami Rakshak Tum Mere॥
Apne Hath Uthaao, Apni Sharan Lagao,
Dwar Para Tere
Om Jaye Jagdish Hare….

Vishay Vikaar Mitaao, Paap Haro Deva॥
Shradha Bhakti Badhaao, Santan Ki Sewa॥
Om Jaye Jagdish Hare….

Om Jaye Jagdish Hare, Swami Jaye Jagdish Hare॥
Bhagt Jano Ke Sankat, Khshan Mein Door Kare
Om Jaye Jagdish Hare…

श्री बृहस्पतिवार की आरती- ॐ जय बृहस्पति देवा-

ओम जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

श्री बृहस्पतिवार की आरती, ॐ जय बृहस्पति देवा।
ॐ जय बृहस्पति देवा, जय बृहस्पति देवा।
छिन-छिन भोग लगाऊं, कदली फल मेवा।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

तुम पूर्ण परमात्मा, तुम अंतर्यामी।
जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता।
सकल मनोरथ दायक, कृपा करो भर्ता।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े।
प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्वार खड़े।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी।
पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

सकल मनोरथ दायक, सब संशय तारो।
विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी।।
ओम जय बृहस्पति देवा।।

150 साल पहले रची गई थी ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती 150 साल पहले रची गई थी ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती
घर-घर में हर धार्मिक अनुष्ठान के बाद आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ का सम्मिलित गान जरूर होता है। 150 सालों से यह आरती पूजा-अनुष्ठान का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। इसे बनाया था पंडित श्रद्धाराम…


150 साल पहले रची गई थी ‘ओम जय जगदीश हरे’ आरती
घर-घर में हर धार्मिक अनुष्ठान के बाद आरती ‘ओम जय जगदीश हरे’ का सम्मिलित गान जरूर होता है। 150 सालों से यह आरती पूजा-अनुष्ठान का एक अभिन्न अंग बन चुकी है। इसे बनाया था पंडित श्रद्धाराम फुल्लौरी ने । बहुत कम लोगों को पता होगा कि ‘ओम जय जगदीश हरे…’ आरती की रचना आज से लगभग 150 वर्ष पूर्व सन् 1870 ईस्वी में हुई और इसके गायक व रचयिता थे विलक्षण प्रतिभाशाली विद्वान पंडित श्रद्धाराम (शर्मा) फिल्लौरी।

पंडित श्रद्धारामजी का जन्म 30 सितंबर 1837 को पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौरी गांव में हुआ और निधन 24 जून 1881 को हुआ। पंडित श्रद्धाराम प्रसिद्ध साहित्यकार तो थे ही, साथ ही सनातन धर्म-प्रचारक, ज्योतिषी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी थे।

पंजाब में उनकी पहचान एक धार्मिक व्याख्यानदाता, कथाकार व समाजसेवी के रूप में भी थी। पंडित श्रद्धाराम जी पंजाब के विभिन्न स्थलों पर यायावरी करते हुए रामायण व महाभारत की कथाएं लोगों को सुनाते रहते थे। दीन-दुखियों के प्रति सहानुभूति रखना भी उनके स्वभाव में था, यही कारण था कि कथा में जो भी चढ़ावा आता, उसे वह उनमें सहर्ष बांट देते थे। उनके कथा वाचन में भी आकर्षण का केंद्र होती थी, प्रवचन से पूर्व गायी जाने वाली आरती ‘ओम जय जगदीश हरे, भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे।’ उन्होंने अनेक धर्मसभाओं की भी स्थापना की थी।

इस आरती की रचना के पीछे भी एक रोचक कारण बताया जाता है। दरअसल पंडित जी सनातन धर्म के एकनिष्ठ साधक थे। उनके व्याख्यानों में जादुई प्रभाव था। पंडित श्रद्धाराम ने अनुभव किया था कि भागवत कथा आदि में लोग सही समय पर नहीं आते, अतएव कथा-प्रवचनों के प्रति रुचि जाग्रत करने के लिए भी कोई अच्छी प्रार्थना या आरती उपलब्ध हो तो संभवतया कथाओं में भी लोग स्वत: ही आने लग जाएंगे। बताया जाता है कि इस अभाव की पूर्ति के लिए श्रद्धाराम जी इस आरती की रचना में प्रवृत्त हुए और सत्य ही इस आरती से उनकी कामना पूर्ण हुई और आरती घर-घर में लोकप्रिय हुई।


इस आरती की रचना के पीछे पंडित जी की कोई स्वमहत्व की कामना नहीं दिखती। क्योंकि सामान्य रूप से जब कोई कवि अपनी रचना संसार के समक्ष प्रस्तुत करता है तो प्राय: ही काव्य या कविता के अंत मेंअपना नाम या उपनाम देकर अपनी पहचान कराता है, किंतु पंडित जी द्वारा रचित आरती में उनका पूरा नाम तो नहीं मिलता केवल आरती की अंतिम अद्र्धाली मेंअवश्य एक संकेत मिलता है, जहां वे कहते हैं- ‘श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ संतन की सेवा।’

आज इसकी रचना के इतने वर्षों बाद भी ‘ओम जय जगदीश हरे’ की लोकप्रियता इतनी है, कि किसी भी पूजा अनुष्ठान के अंत में इसे गाकर ही समापन होता है। इसे रचा भले ही पं. श्रद्धाराम ने हो, पर आज करोड़ों की भक्ति भावना को यह आकार दे रही है।

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निष्कर्ष

दोस्तो आज हमने आपको इस आर्टिकल में विष्णु जी की आरती लिखकर बताई है जिसे आप पढ़ सकते ओर गा सकते हो। विष्णु जी की आरती बड़े श्रद्धा भाव के साथ गाई जाती है जिससे विष्णु जी पर्सन होकर मन चाया फल देते है
भगतो अगर आपको कोई अन्य आरती या भजन की आवश्यकता है तो आप हमें कॉमेंट कर सकते हो हम आपको वह भी लिखे हुवे में प्रोवाइड करवाएंगे भगतो अगर आपको हमारे आर्टिक्ल में कुछ कमी लग रही है तो आप हमें कॉमेंट कर सकते हो हम वह कमी पुरी करेगे साथ मे जो भी कोई गलत लिखा गया है तो उसे हम सही करेगे धन्यवाद।

kulwant singh bhati
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